Saturday, February 11, 2017

रामराज काहूँ नहीं व्यापा


तुलसीदास दिल्ली जा रहा था | एक भगत ने टिकिट ले दिया जो पहले दर्जे में बैठा था | बगल में एक संसद सदस्य थे | उन्होंने चमचों द्वारा पहनायीं गयीं मालाएं उतारीं और पसीना पोंछते हुए बोले - बड़ी मुसीबत है | लोग मुझे इतना चाहते हैं कि तंग हो जाता हूँ |

तुलसी ने कहा - आदमी को सुखी रहने के लिए दो चीजें जरुरी हैं - भ्रम और मूर्खता | वे दोनों आपमें हैं, इसलिए आप खूब सुखी हैं |

- हरिशंकर परसाई (1984-85 में पाक्षिक 'सारिका' में 'तुलसीदास' के नाम से स्तंभ लिखते थे)