Saturday, August 30, 2014

अर्थी की आरती


हिमाल के कपाल से
खाडी के काल तक
लेटा हुआ है एक शव
करवटें लेता, बचता बचाता
पहले फुंफकारता, फिर सुप्ताता
ऐसा लगता जैसे हो लंबी दूरी का सारथी
शायद कह रहा है - बंद करो मेरी अर्थी की आरती ।

अरे, कोई ध्यान से देखो जरा
मरा, तो आखिर कैसे मरा
सर पर गर्मी की ताप के निशान
और पैरों की उंगलियां गली हुईं
ऋषियों जैसे केश मटमैले हुए पड़े हैं
हृदय और वक्ष के संगम पर कुचले जाने की निशानियाँ जैसे सांसों को हो मारती
पर शायद कुछेक सांसें हर अंतराल पर फ़ुसफ़ुसातीं - व्यर्थ है मेरी अर्थी की आरती ।

देखो कितनी तीव्र गति से वीभत्स हुआ जाता इसका तन
शंकित ही है, इस दशा-दिशा में, बचता होगा क्षण भर जीवन
तभी अचानक उस मृत शव में हरकत आई
जैसे घंटियों की बधिर कर देने वाली टनटन से अपने कानों को बंद कर रही हो
और कहने की कोशिश कर रही हो
इन जड़बुद्धियों को कौन बताये, वैद्य हैं अपरिहार्य अभी, नाकि पंडित उमा और भारती
शीघ्र करो, तीव्र करो, वरन मेरी तो क्या, अपूर्ण ही रह जाएगी मेरी अर्थी की भी आरती ।


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ps

Friday, August 22, 2014

जय श्री राम

अच्छा, तो हिमालय पर्वतों की तीन श्रृंखलाएं हैं - हिमाद्रि, हिमाचल और शिवालिक। 


(नेपथ्य से) "जय श्री राम, जय श्री राम"


नहीं, नहीं। राम के नाम पर कोई नहीं है। सबसे दक्षिण वाली श्रृंखला तो शिवालिक है।



"जय श्री राम, जय श्री राम"



ओह, अब समझा, ये तो अंतर्मन की आवाज नहीं बल्कि बाहरी विश्व की पुकार लगती है। चलकर देखूं, इस भारतीय भूगोल की रचना से तो ज्यादा ही रोचक होगा। 


कम से कम बीसियों की संख्या में होंगे। बड़े ही युवा साधु हैं। गेरुए वस्त्र, हाथों में मोबाइल फ़ोन, कानों में माइक्रोफोन और जिह्वा पर राम का नाम - धर्म और आधुनिकता का ऐसा मिलन तो कम ही देखने को मिलता है। लेकिन, आज क्यों? पहले तो नहीं देखा इनको। आज कोई खास दिन है? आज तो शुक्रवार है। रामनवमी बीते भी काफी दिन हो गए। जरूर कोई और पर्व होगा। तारीख कौन सी है आज ?


16 मई, 2014 


ओह!



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ps